07 नवंबर 2009

६ सितंबर की बात है,जब रात के लगभग १ बजे रहे होंगे,,एकाएक खबर मिली कि हिंदी के प्रख्यात हस्ता&र नहीं रहे,,उसके बाद उन्हें याद करने के सिवा कोई चारा भी नहीं बचा था,,तो उन्की यादमें कुछ बातें जो काफी जरुरी हैं,,प्रभाष जोशी जी हमेशा लोगों के संदर्भ बिंदू के रुप में रहे,,उनके साथ जिन लोगों ने काम किया होगा ,मुझे ये आशा ही नहीं पुरा विश्वास है कि उनलोंगो पर गहरी झाप पड़ी होगी,प्रभाष जी की उपस्थिति इतनी हल्की नहीं है कि यूं ही किसी के जीवन से चली जाए,लेकिन ऐसा भी नहीं है कि उनके चाहने वाले ही केवल थे,और उनके केवल प्रशंसक ही केवल थे,उनके चाहने वालों की तादाद तो कम नहीं थी,लेकिन उन्हें न चाहने वालों की संख्या अच्छी-खासी थी,,हालांकि इस तरह की बातें भी प्रभाष जी को उनके एक अलग व्यक्तिव की ओर इशारा करती थी,एक बात जो कि हमेशा प्रभाष जी के बारे में कहा जाता जाता है कि,वे स्पष्ट पछ् लेते थे,जो कहीं-न-कहीं उनकी विशिष्टता को दिखाती थी,,क्या ये जरुरी नहीं है कि किसी भी विषय पर लिखने से पहले ,हमारा स्टैंड साफ होना चाहिेए,हमारी किसी भी विषय के प्रति सोच स्पष्ट होनी चाहिए,,तब उसके बारे में अपने विचार प्रकट करनी चाहिए,,और फिर इसे जितनी चाहें उतनी विस्तार दे सकें,,प्रभाष जी और खबरों की समझ,,तो इस पर तो उनकी समझ कमाल की थी,ये सारी बातें उनके व्यक्तिव में निखार लाती थी ,,इतना सब होने के बाद भी वे अपने-आप को कभी खुर्रम खां नहीं समझते थे,,खबरों की समझ की बात करें उसकी मिसाल तो जनसत्ता अखबार को देखने से मिल जाता था,,बात तो यहां कही जाती है कि जनसत्ता ने हिंदी पत्रकारिता को एक नया आयाम दिया,जनसत्ता ने हिंदी पत्रकारिता के जितने ढांचे तोड़े हैं,उतने किसी अखबार,,न तो किसी पत्रिका ने तोड़े हैं,,कई नई प्रवृत्तियां आज के दिन में दिखने को मिल रही है,उनको शुरु करने में अहम भूमिका जनसत्ता की रही है,,जो कि जोशी जी नाम से जाना जाता था,,उनके भीतर जो एक चीज जो हमेशा जो कल्पनातीत रहती थी,,कि वे वे एक बहुआयामी पत्रकार की कल्पना करते थे,, लेकिन आज के पत्रकारिता के प्रभाव और उसमें आई गिरावट को वे साफ रुप से देख रहे थे,और इससे वे काफी दुखी भी थे,,जो इनके कलम से जाहिर हो जाता था,वे इन पर लिख भी रहे थे,,लेकिन एक स्तर तक इसकी गिरावट को आंकलन शायद वे कर लेभी गये थे,,वे आज के व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा को इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार मानते थे,,वे यह मानते थे कि चूंकि हाल के दिनों में पत्रकारिता में काफी पैसा आया है ,,इसी वजह से इसका माहौल खराब हुआ है,,जो कि तात्कालिक है,और बहुत जल्द वो दिन आएगा जब पत्रकारिता अपनी जगह पर होगी,,और अपने संस्कार,मर्यादएं वापस हो जाएगी,,और तब फिर से इनका समाज के प्रति जबावदेही फिर से स्थापित होगी।इसी यकीन के साथ वे इन दुष्प्रवृत्तियों से पुरे दमखम से लड़ रहे थे।हमे और उनके चाहने और न चाहने वालों को इस बात का इल्म होगा कि अंतिम सांस तक उनका उत्साह और यकीन नहीं टूटा होगा। में

2 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
    कृपया दूसरे ब्लॉगों को भी पढें और उनका उत्साहवर्धन
    करें

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