11 फ़रवरी 2010

क्या समाजवाद का चेहरा बच गया ?

ठाकुर अमर सिंह और समाजवादी पार्टी ,,एक व्यक्ति का नाम और दूसरा पार्टी का नाम,व्यक्ति जो दूनिया के हर उस चकाचौंध को जानता है,,जो मुमकिन हो,बात चाहे दुनिया के सबसे ऊंचे घर बुर्जदुबई में रहने की हो,,या फिर अनिल अंबानी से दोस्ती की या फिर वॉलीवुड के बादशाह बच्चन के छोटे भाई के भूमिका की हो,वो सब उसके पास होता है,जो वो चाहता है,,और इसी व्यक्ति का नाम है,ठाकुर अमर सिंह,और अब उस पार्टी की बात करें जिसके नाम की शुरुआत समाजवाद से होती है,,समाजवाद एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है,और पार्टी की हर एक कार्यकर्ता की कोशिश होती है,,कि उसके सिंद्वांत को अ&;रश पालन किया जाए,यानि कि धन-संपत्ति का वितरण और स्वामित्त्व समाज के नियंत्रण में रहे,ऐसी समाजवाद की परिभाषा है,यानि कि सपा की ऐसी सोच है,,लेकिन वाकई में ऐसा पार्टी के अंदर होता रहा ,,इस पर हमेशा सवाल उठते रहे,,सवाल मुलायम सिंह यादव पर भी उठे,,और पार्टी के सबसे बुजुर्ग नेता स्व.जनेश्वर मिश्र पर भी,,आखिर इस पार्टी का नाम सपा की क्यों रखा गया,,राजद की तरह रासपा,या फिर कुछ और क्यों नहीं,,आम जनता का हित पार्टी के हित से बिल्कुल अलग हो गया ,पार्टी पर व्यक्तिवाद हावी हो गया,,और हम उसी व्यक्ति की बात कर रहे हैं,,जिसने अपने आर्थिक तंत्र के जाल को पार्टी के ऊपर फैलाया,उसने गाहे-बगाहे पार्टी के अंदर वॉलीवुड की इंट्री करायी,संजय दत्त जिसे मुंबई बम विस्फोट का आरोपी माना गया,अमर के प्रताप से पार्टी के महासचिव बने,,इसी पार्टी के अंदर एक जनेश्वर मिश्र थे और एक ठाकुर अमर सिंह ,वैसे तो जनेश्वर मिश्र की तुलना किसी भी स्तर से अमर सिंह से नहीं की जा सकती है,लेकिन दोनों में कुछ समानताएं और असमानताएं भी थीं,,समानताएं केवल ये थे की दोनों एक ही पार्टी में थे,,और असमानताओं की बात करें तो ,जनेश्वर मिश्र आजीवन समाज के निचले तबके की ओर देखा करते थे,तो अमर सिंह की पहुंच समाज के उच्च तबके तक थी,,और हो भी क्यों नहीं वो खुद जो समाज के बड़े तबके में गिने जाते रहे ,,अमर ने इस पार्टी के अंदर समाजवाद का माखौल उड़ाया ,पैसे के बल पर पुरी राजनीति को चलाने की कोशिश की ,,और वर्षों तक इसमें वे सफल भी रहे,,पार्टी के अंदर कुछ लोग आए,,तो कुछ लोग चले गये,,वो सब कुछ हुआ उसके लिए दोष सिर्फ एक व्यक्ति पर गया ,,जो पार्टी के अंदर सबकुछ अपने अनुसार कर रहा था,समाजवाद का चेहरा धुंधला होता जा रहा था,,लेकिन आखिरकार ये सबकुछ कितने दिन तक होता,,इनकी ये करतूत ज्यादा दिन नहीं चलने वाली थी,,और एक दिन ऐसा हो ही गया जब पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया,,और अपने समाजवाद के रास्ते पर चलने की कोशिश करनी शुरु कर दी ,,लेकिन सवाल ये है कि क्या इतनी जल्दी सबकुछ सामान्य हो जाएगा,,अमर के तिलिस्म में आए लोग इतनी जल्दी पार्टी के नई डगर पर चलने को तैयार हो पाएंगें..

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